किसी और के चेहरे पे कहाँ थमती हैं?
ये अदाएँ हैं मेरी, सिर्फ़ मुझी पे जमती हैं |
जिस से करता ही रहता था मैं पहरों बातें,
वो पलट कर कभी, जवाब कोई नहीं देती,
सारी दुनिया से छुप कर, मैं जिस से मिलता था,
अब वो सूखे हुए, गुलाब कोई नहीं देती,
खतों को जोड़ कर, किताबें बना डाली थी कई,
वो मुझे उन में से, किताब कोई नहीं देती,
उसकी साँसे मेरी बाहों में ही सहमती हैं,
ये अदाएँ हैं मेरी, सिर्फ़ मुझी पे जमती हैं |
जो जवानी मेरी उस शख्स पे निछावर थी,
वो असल में मेरे इस मुल्क की अमानत हो,
मैं भटकता रहा, अब जा कर समझ में आया है,
पहले है मुल्क मेरा, और फिर सनम की चाहत हो,
तेरी बिंदिया, तेरे होठों की इबादत की है,
अब ज़रा मादरे-वतन की भी इबादत हो,
किस के जिस्म में भला खुशबू-ए-वतन रमती हैं?
ये अदाएँ हैं मेरी, सिर्फ़ मुझी पे जमती हैं |
ये अदाएँ हैं मेरी, सिर्फ़ मुझी पे जमती हैं |
जिस से करता ही रहता था मैं पहरों बातें,
वो पलट कर कभी, जवाब कोई नहीं देती,
सारी दुनिया से छुप कर, मैं जिस से मिलता था,
अब वो सूखे हुए, गुलाब कोई नहीं देती,
खतों को जोड़ कर, किताबें बना डाली थी कई,
वो मुझे उन में से, किताब कोई नहीं देती,
उसकी साँसे मेरी बाहों में ही सहमती हैं,
ये अदाएँ हैं मेरी, सिर्फ़ मुझी पे जमती हैं |
जो जवानी मेरी उस शख्स पे निछावर थी,
वो असल में मेरे इस मुल्क की अमानत हो,
मैं भटकता रहा, अब जा कर समझ में आया है,
पहले है मुल्क मेरा, और फिर सनम की चाहत हो,
तेरी बिंदिया, तेरे होठों की इबादत की है,
अब ज़रा मादरे-वतन की भी इबादत हो,
किस के जिस्म में भला खुशबू-ए-वतन रमती हैं?
ये अदाएँ हैं मेरी, सिर्फ़ मुझी पे जमती हैं |