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Monday, May 17, 2010

22) तन्हाई ने मेरा साथ

तन्हाई ने मेरा साथ उस हाल में छोड़ा है,
जिस पल लगा मुझको गम-ए-आलम भी थोड़ा है|

क्या पूछिए, क्या माँग सकता हूँ खुदा से मैं,
जब मेरा खुदा वो है, जिसने दिल ये तोड़ा है|

क़ानून बन जाता है उनके मुँह से निकला लफ्ज़,
मैंने निबाहा था, उन्होंने खुद वो तोड़ा है|

मजबूर मैं, लाचार वो, लिल्लाह गला मेरा,
मैं घोंट के मर जाऊं, मगर फंदा भी चौड़ा है|

जिस वक़्त उम्मीदें जगी, तुझको थी पाने की,
क्यों मोड़ इस तकदीर का उसी रोज़ मोड़ा है?

मैं टूटता क्या ख़ाक 'अमन'? झुकता नहीं रब से,
तेरी कसम क्या कर गयी? मुझको ही तोड़ा है|

Sunday, March 14, 2010

21) जितने ख्वाब लेकर मैं जीता हूँ

जितने ख्वाब लेकर मैं जीता हूँ
की वो दिन आएगा जब
मैं बनाऊंगा तुझे मेरी दुल्हन
और इसी आस के सहारे
खुद को ख़ाक तक कर देने की चाहत
मेरे जिस्म से आग सी निकलती है|
शायद उससे भी ज्यादा
तुझे है अरमाँ
मेरी दुल्हन बनने का
जो तेरी आँखों में देखता हूँ मैं
जब भी तुझसे मिलता हूँ|
पर जाने क्यों
किसी बात से डरती है तू
कहती है खुद की गलत है ये
हमारे समाज में प्यार की
इजाज़त नहीं है, उम्र से पहले
पर न वो उम्र पता है तुझको
न रोक पाति है खुद को भी मुझे चाहने से||
पगली है तू जिससे प्यार मुझे है
और तेरी मासूमियत पर मुझे
फिर और भी प्यार आता है|
जी करता है तेरी आखों में
डालकर आखें देखूँ वो नूर
और चूम लूं उन लबों को
गुलाबी लाल, जो उतर दें मुझमें
मदहोश नशा वो प्यार का|
रहूँ उसी अवस्था में...
अनंत तक|
सोचता हूँ,
उस नशे से भी ज्यादा
और नशा क्या होगा
पर...
मैं तो मर ही जाता हूँ जब
झुका के नज़रें और
शरमा के फेर लेती है तू मुखड़ा
छिपा लेती है वो होंठ|
फिर धीमे से कहती है कि
"मेरी तरफ यूँ मत देखो
मुझे प्यार आ रहा है"
हाय! क्यों न जान निसार कर दूँ तुझपे,
क्यों सब कुछ न लुटा दूँ मैं
तेरी इन भोलेपन की अदाओं पर?
और क्यों उम्मीद रखूँ
कुछ और पाने की
उस पल से सृष्टि के अंत तक
जब तेरा प्यार है मेरे साथ
यूं ही, हमेशा, हमेशा!!

20) तुम भी जानती हो



तुम भी जानती हो
कि जब भी तुम झूठ बोलती हो
मुझे हर बार पता चल जाता है
फिर भी तुम
बोलती चली जाती हो

हर उस बार,
जब तुम मेरे और नज़दीक आना चाहती हो
शायद यही सोच कर
घबरा जाती हो
कि कही
ये बेईख्तियारी तुम्हे
हदों को पार करने पर मजबूर न कर दे
और तुम ठीक उसी पल रुक जाती हो जब
मैं फैलाये होता हूँ अपनी बाहें
तुम्हें खुद में समाने के लिए

पर तुम चली जाती हो दौड़कर
मेरी नज़रों से ओझल, ये कहकर
कि अब कभी नहीं आओगी
तेरी आखों में सिर्फ उतने ही आसू
जो न छिप सकें
और न ही दिख सकें
और उनके छलकने से पहले तुम
चली जाती हो, फिर
रोती हो अकेले में

मैं भी खड़ा रहता हूँ वहीँ
जहाँ शायद तुम आओ फिर से
अगली बार मेरी बाहों में
तुम्हे भर लेने के सपनों को लिए
और कभी तुम्हें खुद से
जुदा न होने देने के ख्वाब के साथ
अकेला, सहमा,
पर
आशावादी