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Sunday, March 14, 2010

20) तुम भी जानती हो



तुम भी जानती हो
कि जब भी तुम झूठ बोलती हो
मुझे हर बार पता चल जाता है
फिर भी तुम
बोलती चली जाती हो

हर उस बार,
जब तुम मेरे और नज़दीक आना चाहती हो
शायद यही सोच कर
घबरा जाती हो
कि कही
ये बेईख्तियारी तुम्हे
हदों को पार करने पर मजबूर न कर दे
और तुम ठीक उसी पल रुक जाती हो जब
मैं फैलाये होता हूँ अपनी बाहें
तुम्हें खुद में समाने के लिए

पर तुम चली जाती हो दौड़कर
मेरी नज़रों से ओझल, ये कहकर
कि अब कभी नहीं आओगी
तेरी आखों में सिर्फ उतने ही आसू
जो न छिप सकें
और न ही दिख सकें
और उनके छलकने से पहले तुम
चली जाती हो, फिर
रोती हो अकेले में

मैं भी खड़ा रहता हूँ वहीँ
जहाँ शायद तुम आओ फिर से
अगली बार मेरी बाहों में
तुम्हे भर लेने के सपनों को लिए
और कभी तुम्हें खुद से
जुदा न होने देने के ख्वाब के साथ
अकेला, सहमा,
पर
आशावादी

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