Pages

Tuesday, December 8, 2009

19) The notice

"You can't become a poet unless you feel the pain"

Tenth was my board class. Hence, the wave of writing decreased in pace. But never stopped. Entire 10th class contributed me at most 3 or 4 poems. I was a bit concentrated on fetching up marks that year. My high school also didn't permit me to have time for writing down poems too much. Still, another wave came in the mid of eleventh when I started loving a girl. It instigated to write down few more poems. But the load of studies curbed down that wave also. In my entire Eleventh and twelfth, I could not write poems more than 10 or so. And now college? Lets see, what I make up in future. So far, most of my poems have emerged out for Magazine board only.

Here I have uploaded my 18 poems out of about 80 to 90 in count. Most of my poems are lost, burnt or just thrown away. I never cared to put 'em up in a collection. They just used to be in random loose pages, rough copies etc. This is my post number 19 on this blog and now on, I am gonna have a count of the poems I upload.

"I WON'T upload all my poems of PAST or FUTURE, in effect from today".
-Dec 8, 2009

This post was last updated on : May 4th, 2011
Nitin Grewal

18) ठहरा हूँ (8th class)

अब तो कुछ हलचल हो, बहुत दिनों से ठहरा हूँ.
हर पत्ता उड़ा है, हर फूल खिला है,
पर नहीं अभी मैं लहरा हूँ.
बहुत दिनों से ठहरा हूँ

क्या जाता है? क्या आता है? मुझे कुछ परवाह नहीं
मेरा नसीब यहाँ नहीं है, वो मिलेगा वहीँ कहीं
एक मील का झंडा बन कर, आज कहीं मैं फेहरा हू
बहुत दिनों से ठहरा हूँ

समझना न, परवाह नहीं तो
मैं हू कुछ भी नहीं समझता
अपनी ही धुन में हूँ तो क्या?
मेरा दिल भी है मचलता
सब कुछ देख सकता हू मैं और
अभी हुआ नहीं मैं बहरा हूँ
बहुत दिनों से ठहरा हू

एक जगह ऐसी ढूंढ ही लूँगा, जिसकी तमन्ना सबको है
पर जाने से पहले हमको-तुमको, लिखना एक पन्ना सबको है
पन्ने पर होगा लिखा हुआ, मैं किसके सर का सेहरा हूँ...
सब कुछ है इस पन्ने में मेरा, मैं कितना फीका-गहरा हूँ
मैं भी आना चाहता हूँ इस जहाँ में
बहुत दिनों से ठहरा हू
बहुत दिनों से ठहरा हू

(Written in 8th class)

17) ये नज़र (9th class)

कभी तो पहचानेंगे हम तुम्हारी नजरो को
कभी तो सुनेंगे तुम्हारे खुले हुए इन अधरों को
इन उठती-झुकती आखों में न जाने क्या राज़ है
इस गुस्से में भी कितना प्यारा तुम्हारा अंदाज़ है
आज तो तुम मेरे साथ हो, उतर दो इन गजरो को
कभी तो पहचानेंगे, हम तुम्हारी नजरो को

जब वक़्त था तो मौका नहीं था
और वक़्त गया तो देखने लगे हम
देना चाहें कितनी खुशियाँ
लेना चाहें कितने ही गम
तुम क्या जानो, सु सुनाते हैं
वो कहते सिर्फ बेकद्रो को
कभी तो पहचानेंगे, हम तुम्हारी नजरो को

अपने अपने गुरूर में हम
लड़-कट कर मर सकते हैं
पर मिल जायें हम दोनों
तो क्या नहीं कर सकते हैं?
पार कर सकते हैं हम तब हज़ारो गदरो को
कभी तो पहचानेंगे, हम तुम्हारी नजरो को

तुम भीड़ में घिर गए हो साथी
साथ तुम्हें अब चाहिए
अकेले तो निकल नहीं सकते
हाथ तुम्हें अब चाहिए
फिर छोड़ जायेंगे हम दर्द भरे इन नगरो को
कभी तो पहचानेंगे हम तुम्हारी नजरो को

(Written in 9th class. One of my friend wanted to propose a girl. He asked me to write a poem so that he could impress her. Girl was also in some problems since few days due to some loafer boys. Hence, my this friend wanted to help her out. So, the theme of poem required appropriate words to the conditions. Later on, their pair emerged out as a nice couple.)

16) मैं पागल नहीं हूँ (7th class)

जी करता है तो हँस लेता हूँ
जी करता है तो रो लेता हू
पर ये तो सभी करते हैं
फिर मैं तो तुमसे ज्यादा गम ढो लेता हूँ
यही कहता है कि मैं पागल नहीं हूँ.

कितनी ही बार तुमने मुश्किलें पायी हैं
तुम्हारी कोशिश तो और भी मुश्किलें लायी हैं
मैंने बताना चाह तो तुम्हारी ठोकरें खायी हैं
फिर भी अंत में पाया कि मैं ही सही हू
यही कहता है कि मैं पागल नहीं हूँ.

तुम सब कभी तो रूठे होगे
सच्चे भी होगे, झूठे भी होगे
अपने घरो को छोड़ा होगा
पड़ोसियों ने भी लुटे होगे
पर मुझे देखो, मैं तो वहीँ हूँ
येही कहता है कि मैं पागल नहीं हूँ.

तुमने अपने अस्तित्व पर पूरा भरोसा किया है
न उत्तर ही दिया, न प्रश्न ही खड़ा किया है
पर मैंने तो यहाँ तक पूछा है
क्या मैं कही हू??
येही कहता है कि मैं पागल नहीं हूँ.

(My family members used to call me "paagal" those days as I was a the youngest in the family, and thus lesser mature than everyone in the family. They all used to neglect my thoughts with plea that I was young and thus immature. Though they were right and used to say it in love. But it used to hurt me. Thus wrote this poem to express my anger in literature.)

15) आज मैं (9th class)

दिल कि भड़ास निकालने चला हू आज मैं
बताऊंगा मेरी ज़िन्दगी के मोड़ का आग़ाज़ मैं

न जाने कब से था मेरा सीना बंद
उसमें छिपा मेरा दिल कब से दर रहा
मुझे रोज़ तो देखते हो तुम कबसे
पर जाना नहीं कि मैं जी -जी कर मर रहा
आज खोलूँगा मेरे दिल का वो राज़ मैं
दिल कि भड़ास निकालने चला हू आज मैं

सबके दिल में है कोई न कोई राज़ फिर भी
साड़ी दुनिया रहती है चमकती रातो में
अपनी शान में रखते हैं साज़ वो घर में
डरपोक मन को छिपा जाते हैं बातो में
पर सजाऊंगा निडर सड़क पर साज़ मैं
दिल कि भड़ास निकालने चला हू आज मैं

वो बड़े वीर हैं कि तीर हैं उनके तरकश में
कि हमको हटा दें इस रस्ते से , वो दम नहीं उनमें
कभी चोट थी उनको , तो रुक गए थे वो
पर सम्झादो कि कम से कम हम नहीं उनमें
दम नया है , हू जवानी का नया अंदाज़ मैं
दिल कि भड़ास निकालने चला हू आज मैं

हम थे बात में उनकी कबसे और
कबसे थे वो भी तोह में हमारी
हम ने भेजे थे सफ़ेद पंछी हज़ार
पर उन्होंने भेजी युद्ध कि सवारी
बहुत हुआ , अब भेजूंगा बाज़ मैं
दिल कि भड़ास निकालने चला हू आज मैं

(Written in 9th class. That was 4 AM when I wrote this poem. That day I had decided to rebuke a girl in my class for she insulted Indian philosophy, whom earlier, I decided to propose for her beauty. Finally I decided to choose for Country rather than a girls body.)

14) क्या करेंगे (10th class)

आज न दुश्मन है अपना
न दोस्त है कोई
तो किलों को जीत कर क्या करेंगे?

अब तो तन्हाई में ही
रौनक लगती है
महफिलों को जीत कर क्या करेंगे?

मेरी हिम्मत पर मुझे
धब्बा नहीं लगवाना
बुजदिलों को जीत कर क्या करेंगे?

कभी नहीं मिली जो,
न नर्म पर , न सख्त पर
न देर से , न वक़्त पर
और आज जो मिली हैं वो ,
उन मंजिलों को जीत कर क्या करेंगे?

हमें प्यार है , उन्हें नफरत है
मेरा मिलन था , उन्हें फुरक़त है
और अगर उन्हें पाकर मेरा ही दिल टूटेगा
तो उन दिलों को जीत कर क्या करेंगे?

(Written in 10th class. My Hindi teacher, Respected Bhama ma'm hugged me closed to her heart when she heard this poem.)

13) वतन (11th class)

दोस्त ! मौत मांग ले ! तू ज़िन्दगी मन कर दे
एक दफा वतन कि खातिर आशिकी फना कर दे
अल्लाह अब मर रहा हू , आसमान घना कर दे
अँधेरे में इस मिटटी को मेरा कफ़न बना कर दे

दोस्त चल , तू आज नया विश्वास ले के चल
मातृ -धतृ-मृत -शर्त का एहसास ले के चल
के जीतने चले हैं और जीत कर आयेंगे
पेहें पोशाक , देश का इतिहास ले के चल

न थक , न हार , के आज दोस्त , गर तू हार गया
तो मान , तेरे मान को आज शत्रु मार गया
के रुका नहीं जो अंत तक , आज इस युद्ध में
समझ वही "चेतक " आज नाले के पार गया

कड़कती रहे आज बिजलियाँ बहुत मगर
कर गया तू सामना आँधियों का अगर
तो कई टुकड़े होंगे तेरे सामने तेरे शत्रु के
कुछ मिले न मिले , कुछ पड़े इधर उधर

तुझको कहता है काफिर , वो तेरा शत्रु है शातिर
तेरी मौत कि खातिर , बहुत से जाल बिछाएगा
होगी बाणों कि बरसात , और यमदूतों कि बारात
यही आलम हर दिन रात , पर विजय बनाये जा

दाल उसकी आँख में आज तू नज़र
और उसकी धरती को रौंद कर गुज़र
रुकना नहीं जब तलक मंजिल न मिले
यहीं नहीं लहरा तिरंगा , कराची तक फहर .

फिर सुन स्वतंत्रता कि पुकार को तू कान से
न जीत उनको लूट कर , तू जीत उनको दान से
फिर दिखा के ताक़त का एहसास , अपने दुश्मन को
उन्ही कि उस धरती को , लौटा दे तू सम्मान से

पर उसके लिए तू हो तय्यार , तू दिल आशना कर दे
एक दफा वतन कि खातिर , आशिकी फना कर दे

दोस्त मौत मांग ले , तू ज़िन्दगी मना कर दे !!!!

(Written in the beginning of 11th class)

12) समझ बैठे (9th class)

दूर दिखा था लाल रंग
जो निशानी है खतरे कि
हमें देखा वो लाल फूल
और हम प्यार समझ बैठे

हमें तो "साहिल " भी
डूबने के काबिल था
पर तुमने ही डूबा दिया
तो तुम्हें मजधार सम्जः बैठे .

तुम रोये तो हम रोये
तुम हँसे तो हम हँसे
पर तुम हारे और हम जीते
तो खुद कि हार समझ बैठे

पहले तुमने मेरा दिल तोडा
फिर तुमने अपना दिल तोडा
दोनों टूटे दिल के पंछी
हम तुमने यार समझ बैठे

तुम्हारे प्यार में हम
हो गए इतने अंधे
की तुम चुप -चाप निकल गए
और हम इकरार समझ बैठे

(9th class was my zenith of my poems wth regard to the frequency of writing poems (but not in quality). That academic-session contributed around 20 poems of my collection.)

11) ये दिल (9th class)

मेरे दिल से धुंआ तो निकल जाता है
पर ठीक से जल नहीं पता ये दिल
तमन्नाएं तो हज़ारो हैं
पर ठीक से मचल नहीं पता ये दिल

आखों के आगे अश्क आ जाते हैं
उन्हें कहाँ हम देख पते हैं ? (उन्हें means 'that girl')
किसी के कदम तो बहेक जायें मगर
मुझ से संभल नहीं पाता ये दिल

कब तक टुकड़े टुकड़े होकर
जलते रोते रहेंगे हम ?
मेरा ज़हन साथ दे देगा मगर
पहेल नहीं कर पाता ये दिल

ठीक से जल नहीं पाता ये दिल ...

(Written in 9th class)

10) कविता ! तुम अंतिम हो (10 class)

कविता ! तुम अंतिम हो
'सुमन ' का 'सुमन ' से
'प्रेम ' का 'प्रेम ' से
और मेरा तुम से
सम्बन्ध कभी न टूटेगा
पर तुम अंतिम हो !!

तुम्हारे लिए ये कलम
आज तक चली
बही और बहती रही
आगे भी बहेगी
पर अब तुम्हारे लिए नहीं
इसीलिए तुम अंतिम हो

मुझे गुनेहगार समझो ना
तुम्हारे बारे में सोचने का
इसे इनकार समझो ना
पर तुम्हे लिखने का भी
इसे इज़हार समझो ना
इसीलिए तुम अंतिम हो !!!

तुम्हारी कीमत मेरे सिवाय
कि किसने , मानी किसने ?
तुम्हारी इज्ज़त मैं करता हू
पर नुमाईश से भी मैं ही डरता हू
तुम भी अंदर रोती होगी
इसीलिए तुम अंतिम हो !!

अब कभी न मैं रोऊंगा
न तू रोएगी
न तुझ में दाग होगा
न मुझ में आग होगी
न कागज़ होगा
न कलम होगी
फिर भी , दोनों एक दुसरे के साथ रहेंगे
और तुम मेरे दिल में रहोगी
सदा दफन
इसीलिए तुम अंतिम हो !!!

(Those days, I was mad after reciting my poems in front of people, and soon, I started mistaking that people used to ignore my poems, although it was not so. Hence, in anger, I decided to write my last poem ever. It wasn't my last poem. 10th class)

9) बदले नहीं (9th class)

सालों बाद फिर मिले दोस्त
माना कि लोग बदल जाते हैं
तुम्हारी आदत नहीं गयी
जाम देने कि

आदत वो खेलने कि
हार जाने कि
और
जीत का ईनाम देने कि

दुःख को खुद पी जाने कि
और उन्हें खुश रखने के लिए
ख़ुशी का पैग़ाम देने कि

आदत वो इठलाने कि
गुस्सा होने कि
और
खुद ही सलाम देने कि

पर मैंने बदल दी हैं आदतें
किसी को कर बदनाम देने कि
बात बात पर काम देने कि
और एक ऐसा नाम देने कि
जो सिर्फ मुझे पसंद था

(This poem was written in 9th class. No inspiration. Just trying to manage sentences with rhyming words.)

Saturday, December 5, 2009

8) फ़र्ज़ (7th class)

आतंकी घटनाएं सह कर भारत फलता -फूलता है
कलयुग है ये , सतयुग नहीं , क्षमादान नहीं चलता है
फिर भारत क्यों गाँधी (जी ) कि विचार धरा को ढो रहा ?
जब भारत पर आज भी इतना अत्याचार हो रहा .
पर सैनिको को होने दो शहीद , हमको क्या हर्ज़ है ?
अरे डूब मरो नेताओं , ये तो तुम्हारा फ़र्ज़ है ...

बूँद -बूँद कर घटता , अपने देश भक्तो का ये घड़ा
गुट -निरपेक्षता हर बार अपनी जीत के आगे जा अदा .
पूर्ण शक्ति से लड़ना है अब जो युध्ह भावी है ,
भूल जाना है अब कि भारत शांत स्वभावी है
देश भक्त क्यों खाएं गोली ? उन पर क्या क़र्ज़ है ?
अरे डूब मरो नेताओं , ये तो तुम्हारा फ़र्ज़ है ...

गंगा में बहने दो खून , होने दो रक्त प्रपात
एक अंतिम शब्द -घोष में कर दो आतंकवाद समाप्त ,
प्रेम सुधा तभी बरसेगी , लगातार संग सूत्रधार
नहीं करना पड़ेगा हमें तब शांति का और इंतज़ार
पर अपना मोह छोड़े , किसे इतनी गर्ज़ है ?
अरे डूब मरो नेताओं , ये तो तुम्हारा फ़र्ज़ है ...

क्यों तरसें पिल पिल कर हम , क्यों पिस जायें मिटटी से ?
इतने बेदर्द भी मत बनो कि दिल न देहले चिट्ठी से .
गर्त में चली जाएगी पहचान , नहीं जाने पाएंगे उस पार
वापस आ गए जीतने , हम हारे हुए को अबकी बार
पर हमारी वो पिछली कुर्बानी , कहाँ कागज़ में दर्ज है ?
अरे डूब मरो नेताओं , ये तो तुम्हारा फ़र्ज़ है ...

(Inspired by a poet Vinit Chauhan of Alwar, Rajashthan.)

7) मेहनत (9th class)

तड़प रहा हू मैं ,
किसे कहू ? क्या कहू ?
कुछ मन में मेरे
उमड़ रहा है ,
पर वह क्या है ? कोई समझा दो !
मैं थक गया हू इस दुनिया से ,
या जीना चाहता हू अभी ?
मुझे खुद नहीं मालूम
कोई बतला दो !
ज़िन्दगी है चार दिन कि ,
या हजारो साल पड़े है ,
मेरे आगे बिताने को ?
मुझे मिलना है क्या आगे ?
कोई मिलवा दो !
इस अँधेरे में मुझे
जलती दीख रही
मेरी कुछ मेहनत है ,
उसको बचा लो तुम ,
चाहे मुझे जला दो !!!

6) तुम समीर बन जाओ (8th class)

मैं बहार हू या तुम बहार हो
पर मिली हमारी आखें हैं
एक ही दुःख सता रहा है
हमारे बीच सलाखें हैं
आओ अब मुझसे मिलने
तुम समीर बन जाओ ...

पता नहीं कब से मर रहा
तुम भी दुःख कि मारी हो
एक ही दुःख सता रहा
अब नयी तकदीर हमारी हो
अब धीरज खो रहा है
तुम भी अधीर बन जाओ
आओ अब मुझसे मिलने
तुम समीर बन जाओ ...

पत्थर मैं भी नहीं
पत्थर तुम भी नहीं
पर नियति यही चाहती है
तो फिर यही सही
चलो नदी बन कर मैं बहूँ
तुम मेरा तीर बन जाओ
आओ अब मुझसे मिलने
तुम समीर बन जाओ ...

हमारा मिलन न हो सकेगा
आदत डालें दूर रहने कि
मैंने तो आशा ही छोड़ दी
तुम्हारे संग बहने कि
कभी न मिलने वाला
मैं तो राँझा बन गया
जाओ अब तुम भी घर
तुम भी हीर बन जाओ
आओ अब मुझसे मिलने
तुम समीर बन जाओ ...

(Inspired by a temporary attraction towards a girl in my school days. She is no longer in my mind. Soon I started hating her because she used to hate India, my motherland. But thanks to her for I could make such a nice poem in 8th class. Dedicated to love)

5) सब भूले (7th class)

मत हसो इतना कि आसू निकल आयेंगे
तुम्हारी देश भक्ति से क्या ये नेता बदल जायेंगे ?
जो प्यार दिया तुमने देश को ,
क्या वही देश ने दिया ?
नहीं अपनाया तुम्हे ,
फिर क्यों ये तुमने किया ?
अगर होता तुम में कोई
नेता -मंत्री का बेटा दामाद ,
नहीं सहना पड़ता तुम्हें
वो दर्द जो अब तक पिया
वहां नहीं वो नेता जो
तुम्हारे देश को बचायेंगे
मत हसो इतना कि आसू निकल आयेंगे

शरीरों में थिरकन न थी
पड़े वो ढीले हाथ थे
देश के लिए उठे ये हाथ जो नहीं तुम्हेरे साथ थे
तुम शेर थे , मेमने नहीं
पर देश को तुमसे आज क्या ?
काम पूरा हो गया
फिर देश को तुम्हारी लाज क्या ?
क्या आगे भी देशभक्त ,
ऐसा ही सिला पाएंगे ?
अगर पता हो कि यही होगा
तो देश रख्षा से कतरायेंगे
"वसुधैव कुटुम्बकम " कहाँ ?
खुद में ही सिमट जायेंगे .
मत हसो इतना कि आसू निकल आयेंगे .

(Dedicated to all those Indian soldiers who are still war prisoners since many years in other countries, but Indian government is not doing anything to get them back.
Written in 7th class)

4) जाने कैसे (8th class)

सोचता हू मैं
कभी कभी
करोड़ों हृदयों को कुचलने वालो
उनके घर उजाड़ कर
तुम समझते होगे
आखिर गरीब है
लहू का घूँट पी लेगा
जीवन कि डोर को भी सी लेगा
इंसान ही तो है
जी लेगा
पर मुझे अचम्भा है
घोर अचम्भा
इनकी इतनी चीखें सुनकर भी
जाने तुम कैसे जी लेते हो ??

(Written in eighth class)

3) धोखा (8th class)

किसी कि छाँव में भी धुप के छेर होते हैं
सहारे कि चारपाई भी चुभ जाया करती है
प्यार के दिए से भी धुआं निकला करता है
आज कि दुनिया कि हर चीज़ में धोखा है

रंगीन रागों में भी खराश हुआ करती है
कलाकार कि कला में भी दाग हुआ करती है
मित्रता में भी एक स्वार्थ हुआ करता है
आज कि दुनिया कि हर चीज़ में धोखा है

किन्ही भी दो शिक्षाव में मतभेद हुआ करता है
भगवन कि नीति में भी गलती हो जाया करती है
पर किसी के सच में कोई दोष क्या निकाल दे
इसके सिवाए दुनिया कि हर चीज़ में धोखा है

2) रक्षाबंधन (Class IV)

आओ बहना राखी बंधो , भाई तैयार है
बाद में कुछ भी मांग लेना , पहले मेरा प्यार है
.
कच्चे धागे कि सौगंध तेरे भाई को है ,
तुझ में वो प्यार कि सुगंध आई जो है
कभी तू मुझसे दूर होएगी , कभी मैं ही दूर होऊंगा
तू मुझे राखी भेजेगी , मैं तुझे प्यार भेजूंगा
इस प्यार कि गंगा को हमें आगे ही बहाना है
हम दोनों के इस रिश्ते को हमें बखूबी निभाना है
...
(I wrote this poem in IV class. This was my eleventh poem)

1) My first poem ever - माँ (Class-II)

माता मेरी , दाता मेरी , हो तुम सबसे प्यारी ,
इस दुनिया में लगती हो तुम मुझे सबसे न्यारी
ऐसी ममता माता कि जग में नहीं मिल पाए
मुझे देख माँ , तुम्हारी आखों में प्यार भर आये .
माँ के हाथ का खाना मुझे बहुत अच्छा लगता है
पिता का प्यार माँ के सामने कच्चा कच्चा लगता है
माँ इस प्यार को तुम बरक़रार कर रख देना
लेकिन जब मैं बदमाश बनू , मुझे फटकार कर रख देना

(I wrote this poem in my second class. This was my first poem ever)