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Wednesday, November 30, 2011

49) तुझे याद कर के

जब गला भर आता है ये, तुझे याद कर के,
जब शमा बुझाता है परवाना तुझे याद कर के,
तब करूँ तो मैं क्या करूँ, ये कैसी कसम दी है?
के रो भी नहीं सकता मैं अब, तुझे याद कर के|

हलक तक आकर लफ़्ज़, फँस कर रह जाते हैं,
गर जुबान पर आये तो ये, आँसू बन जाते हैं,
इसीलिए, एक घूँट में, पी गया एहसास,
ताकि आँसू ना पीने पड़ें अब, तुझे याद कर के|

दोस्तों ने बनाया मजाक, मेरी मोहब्बत का,
तूने भी उड़ाया मजाक, मेरी मोहब्बत का,
किस-किस को सुनाया मजाक, मेरी मोहब्बत का,
और जिया उसी मोहब्बत के लिए मैं, तुझे याद कर के|

आज़ाद कर दे मुझको, तुझसे मिलने आऊँगा,
वो कसम हटा दे वरना अमन मैं, कुछ कर जाऊंगा,
ना मिला तो जान मैं सच-मच मर जाऊंगा,
वैसे भी मरना ही है अब, तुझे याद कर के|

Monday, November 7, 2011

48) ना सही


तेरे साथ बिताए थे, जो हसीन पल मैंने हज़ार,
अब जिंदगी तेरे बिना जीनी पड़े तो भी सही,

तुझे मुझ से नफरत जो हो गई है इस क़दर,
के भूल गयी है बरसों की अपनी मोहब्बत को सही,

सीने में सजा के रखूंगा मैं तेरे प्यार का मदिर,
मूरत तेरी हो सही, जो ना हुई तो ना सही,

तू भी मुझ को याद कर के तड़पा करेगी ज़रा ज़रा,
और पोंछेगा तेरे आँसू, जो मैं नहीं तो कोई और सही,

तड़प मुझे भी है, तेरी जुदाई के गम की कसम,
पर जिंदगी है इस तरह तो जिंदगी यूं ही सही,

अपनी मोहब्बत कभी भी अपना नगमा बन पाई नहीं,
ये बन जाए 'अमन' की एक शायरी तो वही सही....

(Dedicated to one of my best friends who ...)

Tuesday, May 10, 2011

47) बरसों के दर्द के साथ

बरसों के दर्द के साथ, जब आह निकल गयी,
वो इश्क निकल गया, संगदिल की चाह निकल गयी|

देख उन के जलवे, सब हैरान हैं जब वो
लहरा हवा में आँचल, यूँ सरे राह निकल गयी|

जो तुझे बता ना पाया, वो शर्म-ओ-हया की बात,
सो कलम से हो कागज़ पर, बेपनाह निकल गयी|

टकरा के मेरे दिल से, गूँजी है तेरी हर बात,
सो नज़र जिगर के पार कुछ इस तराह निकल गयी|

कभी आशिक की तुरबत से हो कर, तुम गुजर गए,
कभी गलियों से खुद मेरी, दरगाह निकल गयी|

रोक रखी थी जान के इंतज़ार में ही जान,
आये तो जान के साथ 'सुभानल्लाह' निकल गयी|

ज़ानों पर बैठा था, हाथ में मोहब्बत-ऐ-गुल लिए,
वो नज़र हिला के मौज में, बेपरवाह निकल गयी|

क्यों उन ही से मोहब्बत होनी थी, मुझ गरीब को?
दिल के आर-पार, नज़र-ऐ-ज़ादी-ऐ-शाह निकल गयी|

क्यों मेरी तरह भंवरों ने भी रखा है दिल पर हाथ,
शायद गुलशन से भी उस की इक निगाह निकल गयी|

'अमन' को भी है कदर-ओ-हवस, मेरी शायरी की,
जो बेइख्तियार ज़ुबान से भी, वाह निकल गयी|

Meanings: संगदिल-stone heart, हैरान-astonished, शर्म-ओ-हया-blushing and shyness
         इस तराह-in such a way (इस तरह), तुरबत-coffin, ज़ान-knees
         ज़ादी-ए-शाह-princess (शहज़ादी), नज़र-ए-ज़ादी-ए-शाह-a look of princess
         क़दर-ओ-हवस-respect and wish, बेइख्तियार-uncontrolled, वाह-wow

Wednesday, May 4, 2011

46) शायराना हो गए हम

शायराना हो गए हम ऐतबार में,
खुशी मिली है कब-किसे उजड़ी बहार में?

मुस्कुराता हूँ तेरे बिना भी जानशीन,
दर्द दिखता हो भले मेरे अशार में|

उम्मीद लाऊँ कैसे मैं तेरे नाम पर?
बिखर चुके हैं अरमां सब तार-तार में|

वफ़ा नहीं मिली उसके खून में वरना,
खूबियाँ हज़ार हैं मेरे यार में|

वो कह गए थोड़ी सी देर में आने को,
यहाँ लाश हो गए हैं हम इंतज़ार में|

हमने दिल दिया था उनको बड़े शौक से,
उसने बेच दिया उसे दिल के बाज़ार में|

दुनिया पागल कह कर हँसती है दीवाने पर,
ऐसा लुटा 'अमन' एक 'तँवर' के प्यार में|

Meanings: ऐतबार-trust जानशीन-an address to
         beloved अशार-plural of शेर, couplets in urdu poetry
         उम्मीद-hope अरमां-dreams तार-तार में-into pieces
         वफ़ा-faithfulness, खूबियाँ-qualities दीवाना-crazy

45) हर दिन एक आग थी

हर दिन एक आग थी, ज़िंदा-दिल हर रात थी,
जब थे जवान, जवानी की कुछ और बात थी|

कुछ नया करने को मचलता था दिल,
वो दस्त्कारियाँ पल-पल की, वो तमन्नाएँ साथ थी|

कहाँ जिंदगी ले जायेगी, फर्क नहीं पड़ता था|
बस वलवले थे सीने में, बातें सब जज़्बात थीं|

दिमाग में कुछ कर गुजरने का जूनून रहता था,
तेज याद, तेज दिमाग, तेज हर बात थी|

दुनिया को उलट-पुलट कर देने की चाहत थी,
हमसे होते गुलशन, हमी से वीरानों में बरसात थी|

जोश मन में होता था, एक चटकी थी बदन में,
'अमन' हर चीज़ हमको मुँह-ज़बानी याद थी|

Meanings: जिंदा-दिल-full of life दस्त्कारियाँ-innovative activities वलवले-enthusiasm
जुनून-crazy गुलशन-gardens वीराना-barren land चटकी-quickness

44) उनसे डरना क्या?

उनसे डरना क्या? क्या मौत से डर अपना?
वो कहे तो काट भेजूँ मैं ये सर अपना|

जिसे पता नहीं मोहब्बत किस दर्द को कहते हैं,
उसे समझाऊँ कैसे मैं हाल-ए-जिगर अपना?

दिया असर नहीं करता इस गरीब-खाने में,
बिना जले कब रौशन हुआ है घर अपना?

सारा ज़माना उसने अपने हक में कर लिया,
किस्सा-ए-जफा बयाँ किया ये किस क़दर अपना?

इतनी बदहवासी के देख भी न सका,
ठोकर खाता फिरता है कोई दर-बदर अपना|

भरी महफ़िल में कैसे तुझ पर ज़ाहिर करता मैं?
अंदर ही अंदर सीने में जो बना ग़दर अपना?

अदा से गलियों में गुज़रना क्या हुआ उनका?
हो गया दुनिया-जहान से ही गुज़र अपना|

तुमने सरे बाज़ार 'अमन' का नाम किया रुसवा|
पर आखें थीं कुछ और, कहता है नामबर अपना|

Meanings: हाल-ए-जिगर-situation of heart दीया-lamp गरीब-खाना-house of a poor
रौशन-enlightened हक-favor किस्सा-story जफ़ा-betrayal बयाँ-describe कदर-way
किस्सा-ए-......किया अपना-in what manner did she describe the story of infidelity?
बदहवासी-unconscious दर-बदर-door to door ज़ाहिर-express ग़दर-revolution
अदा-obsession दुनिया से गुज़ारना-to die सरे बाजार-in public
रुसवा-dishonor नामबर-messenger

Friday, April 29, 2011

43) गुज़रे चार बरस यूँ

गुज़रे चार बरस यूँ, कुछ हासिल नहीं हुआ,
हुआ कौन गुनेहगार, गर मेरा दिल नहीं हुआ?

नया नजरिया रखता तो जिंदा रह पाता मैं,
यहाँ क़त्ल तो हुआ मेरा, पर कातिल नहीं हुआ|

पत्थर से इश्क कब से मैं, किये जा रहा था,
तुझ सा संगदिल, मुझ सा कभी बिस्मिल नहीं हुआ|

नाउम्मीदी भी न होती, गर इन्साफ मुझे मिलता,
ज़ालिम ज़माना मेरे लिए आदिल नहीं हुआ|

तुझे भूलना मुझको, नामुमकिन हो गया था,
जब मुझे भूलना तेरे लिए मुश्किल नहीं हुआ|

कम होंगे सुनाने वाले, वो किस्से भरथरी के,
मैं वफादार हूँ, क्या हुआ जो तिल नहीं हुआ?

दिल क्या लगा, फिर काम में दिल ही नहीं लगा,
कहते हैं कहने वाले, मुझ सा काहिल नहीं हुआ|

उन्हें इश्क हो जिस से, मैं बनूँ वो क्योंकर?
सिर्फ रेगिस्तान हुआ, मैं साहिल नहीं हुआ|

मियाद मुझे भी याद है, जीने दे कुछ पल तो,
नहीं आऊँगा गर तेरे काबिल नहीं हुआ|

उसने जनाजे में मुझे शामिल नहीं किया,
मेरे जनाजे में वो खुद शामिल नहीं हुआ|

तुझे दुनिया की फ़िक्र थी, मुझे मोहब्बत की,
मैं बेवफा ना हुआ, तू जाहिल नहीं हुआ|

कैसा नशा है मोहब्बत के इन मैखानों में,
वो क्या समझे जो इस में दाखिल नहीं हुआ|

दुनिया से डरना मेरी फितरत में नहीं 'अमन',
सब कुछ हुआ मैं, मगर बुजदिल नहीं हुआ|

Meanings: बरस-years हासिल-to get, advantage गुनेहगार-criminal
         हुआ कौन......नहीं हुआ-none but my heart is the sole criminal
         नजरिया-viewpoint कातिल-murderer संगदिल-stone hearted
         बिस्मिल-lover नाउम्मीदी-hopelessness आदिल-just, righteous
         नामुमकिन-impossible भरथरी-a character in Haryanvi folk tale
         of 'Kissa Pingla-Bharthari' काहिल-lazy क्योंकर-how साहिल-beach
         मियाद-time limit जनाज़ा-journey of coffin जाहिल-manner less मैखाना-bar
         दाखिल-enter फितरत-nature बुज़दिल-coward

Wednesday, April 27, 2011

42) हर चीज़ ज़हन से

हर चीज़ ज़हन से होकर है, पूरी रात आती-जाती
सिर्फ इक दर्द नहीं जाता, और इक नींद नहीं आती|

जला देना पढ़ कर मेरे, सारे कलाम, मेरी जान,
ये राज़ की बातें किसी से ज़ाहिर, की नहीं जाती|

अच्छा किया जो साकी ने बदल दी थी बोतल,
समां वरना कुछ और होता, जो थोड़ी भी चढ जाती|

लड़ेंगे क्यों बिसात पर, भला अब अपने मोहरे,
के तेरे हैं लड़की वाले, और मेरे हैं बाराती|

वो दिन और थे जब हर पल, था चर्चा-ए-इश्क,
अब उस दौर की एक याद भी, सही नहीं जाती|

मैं आया था उस रोज, सुनने तेरी एक हँसी,
पर मुझे देख, क्यूँ तेरे मुँह से आवाज़ नहीं आती?

मैं कर्ज़दार हूँ किसी, तेरी ही अपनी का,
जिसके बिना मुझे तेरी, खबर नहीं पाती|

हर अदा तेरी मुझे, पागल कर रही है,
भला एक बात तो हो जो तेरे, करीब नहीं लाती|

हर बार तेरी चली, क्या बुरा होता अगर,
मरने से पहले एक बार, मेरी भी चल जाती?

तखल्लुस ही कर लिया, मैंने तेरा नाम 'अमन',
अब नाम जुड़े रहेंगे, जब तक मौत नहीं आती|

Meanings: ज़हन-brain कलाम-poems ज़ाहिर-express साकी-bartender समां-environment
         बिसात-chessboard मोहरे-pieces चर्चा-discussion दौर-times सहना-tolerate
         उस रोज-that day तखल्लुस-pen name, nom de plume

41) तुम्हें चाहूँ तो हो गुनाह

तुम्हें चाहूँ तो हो गुनाह, पे सीने में वबा है, उसका क्या?
खत लिखूँ तो भी कुसूर, जो न लिखूँ तो भी खता|

इतनी जवान, के हर इंसान, तुझे चाहता है जान-ए-जाँ|
ऐसा हुस्न के सौ बरस बहार न हों तो क्या हुआ?

तू हसीन दिलकश परी, के हूर भी है परेशाँ,
और मुझे देखना तेरा पर्दा हटा-हटा के ज़रा-ज़रा|

प्यार पे बस नहीं मेरा, अब हो गया सो हो गया|
नाम तेरा लूँ कहाँ? समझ भी जा दिल की ज़ुबां|

बस एक बार तू मुझको, अपना बना ले दिलरुबा|
के कह गए हैं संत-फ़कीर, कर भला तो हो भला|

'अमन'-ए-उसूल-ए-मोहब्बत है कि सबसे प्यार करता जा|
के एक डाल पर दो गुल भी खिल सकते हैं बावफ़ा|

Meanings: गुनाह-crime, पे-but वबा-epidemic (here, revolution) खता-mistake
         हूर-a fictious angel considered to be maxima of beauty ज़रा-ज़रा-little bit
         जुबां-language उसूल-principle बावफ़ा-without being infidel

40) इंतज़ार-ए-जवाब ने

इंतज़ार-ए-जवाब ने मुझको पूरी रात जगाया,
एक सवाल मिला उनका, पर जवाब नहीं आया|

उस लड़की पे दिल आया तो बुरा क्या किया?
जिसकी हर अदा ने मुझे अपना कर दिखाया|

तड़पाने के अंदाज़ से, वो मुस्कुराकर चली गयी,
मेरे हाल पर ज़रा सा भी तरस नहीं आया|

उसकी चाल-ओ-चहक पर जाने कब से मुतासिर हूँ,
पर वक्त-ए-सूरत-ए-इज़हार उसे तनहा नहीं पाया|

अँधेरे में भी ज़र्द-ए-तस्वीर समझ आती है,
ढूँढने में वक्त यूँ ही, बेवजह नहीं गँवाया|

कुछ तो बात है उसकी सूरत-ओ-जवानी में,
जो बिगाड़ देती है सारा काम बना बनाया|

न "ना" में लब खोले ज़ालिम, न "हाँ" में हिले गर्दन,
क्या मेरा 'अमन'-ए-दिन-ओ-रात उसे रास नहीं आया?

Meanings: इंतज़ार-ए-जवाब-waiting for reply चाल-the way she walks
         चहक-the way she speaks मुतासिर-impressed सूरत-situation
         वक्त-ए-सूरत-ए-इज़हार-the time and situation of proposal
         पर वक्त-ए-...... नहीं पाया-She wasn't alone when I wanted to
          propose her ज़र्द-ए-तस्वीर-colors of painting सूरत-face
         जवानी-youth लब-lips ज़ालिम-cruel रास-acceptable

Tuesday, April 5, 2011

39) नहीं तेरे सिवा मेरी

नहीं तेरे सिवा मेरी वजह-ए-कसीदा कोई और|
होगा कौन मुझ सा खुश-ओ-संजीदा कोई और?

न कोई है मुझ सा, न कोई और होता था|
मेरा अक्स तुझको दिखता है, सो  वो होगा कोई और|

मेरी फितरत जुदा है हर इंसान-ओ-रूहे दुनिया से|
न बदलता होगा मेरी तरह यूँ, जुबान-ओ-सदा कोई और|

सौ बार जुदा हुआ मैं, सो हर बार दुहाई है|
इस कदर न करे मुझे, खुद से जुदा कोई और|

क्यों बदल रहा है खुद को, देख इस दुनिया की तासीर,
तू खुद है तू, तुझ पर नहीं, जमती अदा कोई और|

किस बात पे इतराती है 'अमन', गर मैं न होता तो,
तुझे चाहता भी कोई और, तेरा होता खुदा कोई और|

Meanings: क़सीदा-a collection of poems, नहीं तेरे .... कोई और-you are the sole inspiration
          for all the poems I have ever created. संजीदा-serious खुश-ओ-संजीदा-happy
          as well as serious simultaneously, अक्स-image फितरत-nature जुदा-different
          इंसान-ओ-रूह-every living and dead ज़ुबान-ओ-सदा-language and voice
          दुहाई-request while crying इस कदर-in this way जुदा-apart तासीर-nature
         जमना-to suit इतराना-over proud गर-if

Thursday, March 17, 2011

38) सात साल तक हम दोनों ने

सात साल तक हम दोनों ने, खून जला गुज़ारे हैं|
टूट गए सो गम नहीं, आखिर ये ख़्वाब हमारे हैं|

दुआ-दुआ चिल्लाता था पर मिली न एक भी मरते दम,
और दुआ माँगने मज़ार पे मेरी, लोग कितने सारे हैं|

हर रात किस्मत ढूँढता था, देख आसमां का मंज़र,
मेरी किस्मत का एक नहीं, और सब के लाख सितारे हैं|

बेवजह सब जी रहे, और बेक़दर है जिंदगी,
जला के नक़्शे, हाथ सेक, अब फिरते मारे-मारे हैं|

तू छोड़ इनकी फ़िक्र वरना, अपनी कदर गँवाएगा,
ये पहले भी बेचारे थे, ये आज भी बेचारे हैं|

वो शराब नीचे गिरा रही है, और लोग फर्श से पी रहे,
क्या खूब नशे के प्यासे हैं, क्या खूब आज नज़ारे हैं|

देख लंगड़े की बैसाखी, रोया 'अमन' तू इस क़दर,
के तुम भी बेसहारे हो और हम भी बेसहारे हैं|

Meanings: ख्वाब-dreams दुआ-blessings मज़ार-grave मंज़र-view किस्मत-luck
         बेवजह-without reason बेकदर-without respect नक़्शे-maps सेकना-basking
          मारे-मारे-door to door बेचारे-poor नज़ारे-views बैसाखी-crutch बेसहारे-helpless

Wednesday, March 16, 2011

37) है आज क़यामत

है आज क़यामत, मेरे घर की हर इक ईंट ढह गयी,
माशूक खंजर लायी थी, पर मुझे बेवफा कह गयी|

आज की रात है बेखुदी, यारों मुझे अब मत पिलाओ,
वो दिख रही है हर जगह, यह गयी, वो वह गयी|

आशिक हूँ मैं, इक खत लिख कर कागज़ की नाव बनायी थी,
ऐ काश! उनको मिलती पर, बारिश में घिर कर बह गयी|

वो किसी और की हो गयी, मैं किसी का भी न हो सका,
हर बात मुझको तड़पती, हर याद को वो सह गयी|

जी रहा था चैन की एक साँस के इंतज़ार में,
चैन-ओ-'अमन' को पाना, मेरी हसरत बन कर रह गयी|

Meanings: क़यामत-catastrophe माशूक-beloved खंजर-dagger बेवफ़ा-infidel
         बेखुदी-unconsciousness अमन-peace (here, also the nom de plume)
         हसरत-wish

36) ऐ पगली, मेरी मौत तो

ऐ पगली, मेरी मौत तो, तेरी दिली तमन्ना थी,
के जला है मेरा आशियाना, जार जार अब रोए क्या?

दुनिया से डर से एक भी आँसू नहीं गिराया, हाय-हाय,
देखने वाले चल दिए, तू अब दामन भिगोए क्या?

फ़कीर तुझसे माँगता था दुआ के बदले आने चार,
सात आसमां देख कर अब, आँख अपनी खोए क्या?

था ख्याल टूट-टूट, दरवाज़े पर जाता बार-बार,
ये हवा भी दर हिला कर दिल में ख़्वाब संजोये क्या?

तू दर्द मेरा समझे क्या? याद मेरी आये क्यूँ?
जो घर बसाए हाथों से, वो अपनी नाव डुबोए क्या?

सुकून मिला न उम्र भर, कोशिश-कोशिश में मरा 'अमन',
गर मुरझाये न मुद्दत तक तो, सिवा-ऐ-खार कुछ बोए क्या?

Meanings: दिली तमन्ना-desperate want आशियाना-home ज़ार-ज़ार-to cry in full volume
         फ़कीर-saint आने-1/16th part of a Rupee (in British times) ख़याल-thought
         दर-door ख्वाब-dreams सुकून-rest उम्र भर-entire life गर-if मुद्दत-for a long time
         सिवा-except ख़ार-thorns सिवा-ए-ख़ार.....-what to sow except thorns

Thursday, March 10, 2011

35) जाती नहीं इस रात

जाती नहीं इस रात क्यूँ तुम अपने घर, कहो?
क्यों राह चलते मुझे देख, झुकी ये नज़र कहो?

खता तो वो की है, भला क्या जवाब दोगी तुम?
यकीन तेरी सफाई पर रहा नहीं, मगर कहो|

छोड़  न दे वो, बुरा ना मान जाए कहीं,
मांगूँ जो मोहब्बत में सिर्फ एक, बोसा अगर कहो|

मुद्दत से यार के पैगाम का इंतज़ार है,
क्या महबूब का खत लाये हो? नामबर कहो|

चाहता नहीं के इश्क-ऐ-इज़हार हो सरे आम,
इल्तिजा अजनबी, धीरे से, अपना नाम भर कहो|

जो नहीं है तेरे पास, किसी को क्या देगा सौगात 'अमन'?
ये  बात किसी को सिवाए, दर्द-ओ-गम देकर कहो|

Meanings: नज़र-eyes खता-mistake यकीन-belief सफाई-clearification
         बोसा-kiss मुद्दत-a long time पैगाम-message महबूब-beloved
         नामबर-messenger इश्क-ए-इज़हार-expression of love
         सरे आम-in public इल्तिजा-request अजनबी-stranger
          सौगात-gift दर्द-ओ-गम-pain and sorrow सिवाय-except

Wednesday, March 2, 2011

34) इक ज़ख्म बना था दोस्त

इक ज़ख्म बना था दोस्त मेरा, उसको मैंने भरने ना दिया|
कुरेदता रहा उम्र भर उसको, दोस्त को मरने ना दिया|
जब तक मैं ज़िंदा हूँ, ज़ख्म भी जिंदा रखूंगा|
अब दर्द हो तो हो, तन्हाई तो न होगी|

आखिरी बार जाना मुझे, लगा ख्वाइश-ए-ज़हर था|
इस दफा तो यूँ लगा, जैसे मेरा ही शहर था|
वही दर-ओ-दीवार थे, उसी में थी तू|
महज़ ख्याल ही सही, रुसवाई तो न होगी|

जाता नहीं मैं खुदा के दर, भला वो भी तो है इक पत्थर|
फिर कैसे ज़माने को उसमें, खुदा की मूरत दिखती है?
जग रब की करे इबादत, मैं करूँ इबादत यार की|
फिर लाख दो ताने, दिल में बेपरवाई तो न होगी|

शराब भी नहीं पीता, डर है, कहीं अमन न दिखे बेखुदी में|
नशे में, लोगों ने कहा है, यार की सूरत दिखती है|
ना उनके दिखे से दिल में ठंडक, न जाम से सुकून-ऐ-जिगर,
अब आग लगे सो लगे बज़्म-ऐ-दिल, सुनवाई तो न होगी|

Meanings: ज़ख्म-wound ख्वाईश-ए-ज़हर-wish to have poison
         एक दफा-once दर-ओ-दीवार-door and walls महज़-only
         रुसवाई-dis-honor खुदा का दर-Temple इबादत-worship
         ताने-taunts बेपरवाई-carelessness बेखुदी-unconsciousness (here, drunken)
         सुकून-rest जिगर-liver बज़्म-court सुनवाई-hearing of a court

33) मेरे चेहरे से वो नकाब,

मेरे चेहरे से वो नकाब,
हटा देना उसका,

दिल-ए-गम क्या? दिल का ही,
मिटा देना उसका|

मेरे लब चूमने की खातिर वो,
नज़दीक आना मेरे,

और बेईख्तियारी में वो दीवार से,
सटा देना उसका|

Meanings: नकाब-a piece of veil to cover face दिल-ए-गम-pain of heart
          लब-lips नज़दीक-close बेईख्तियारी-out of control दीवार-wall

32) हँसता हूँ जब कहती हो


हँसता हूँ जब कहती हो, कुछ हो नहीं सकता,
लगे दाग-ए-जिगर को, कोई धो नहीं सकता|

कैसा लगा है ये दिल, इक नादान अजनबी से?
जो रुला तो देता है खून, खुद रो नहीं सकता|

31) हो गयी थी नफरत

हो गयी थी नफरत, फिर भी होती क्यूँ महसूस,
तेरे घर के,करीब मेरी मज़ार, बनाने की ज़रूरत थी?

मेरे जाने के बाद भी उसका एक आशिक दूसरा था,
इक रोज तो मुझको भी देर से, आने की ज़रूरत थी|

मेरी तुरबत पे पहली दफा, इश्क-ऐ-इज़हार किया तुमने,
तुझको भी गिला है कि, जीते-जी जताने की ज़रूरत थी|

न दवा की हसरत थी, न दारू पुरानी हो अमन,
मुझे नज़र-ऐ-प्यार-ऐ-यार, पुराने की ज़रूरत थी|

गए ज़फर-आतिश, और गए वो ग़ालिब-मीर,
मुझे भी उस रेख्ते के ज़माने की ज़रूरत थी|

तेरी समझेगा 'अमन' कौन, इस राह में बातें?
उन्हीं के दौर में तुझको भी, जाने की ज़रूरत थी|

Meanings: नफरत-hate मज़ार-grave ज़रूरत-need इक रोज-some day
          तुरबत-coffin पहली दफा-first time इज़हार-express गिला-sorrow
         जीते-जी-while living दारू-wine नज़र-sight
         नज़र-ए-प्यार-ए-यार-a look of beloved with love
         ज़फर-Bahadur Shah 'Zafar' - II, आतिश-Khwaza Haider Ali 'Aatish'
         ग़ालिब-Asadullah Mirza 'Ghalib', मीर-Mir Taki Mir
         रेख्ता-A poetic form of urdu in mid 1800's दौर-times

30) है हिम्मत, कि कर लो तुम

है हिम्मत, कि कर लो तुम, इकरार दुनिया के सामने?
फिर क्यों कहूँ तुझको मैं अपना, यार दुनिया के सामने?

तेरी मोहब्बत ने मुझ को छोड़ा ही कहाँ का?
तू जा, के अब मैं रोऊँगा, जार-जार दुनिया के सामने|

मैंने तो छुपानी चाही थी, तूने नीलाम ही कर डाली|
मोहब्बत का ये क्या किया, मेरे यार दुनिया के सामने?

जो करता नहीं क़ुबूल मोहब्बत, खत में, न तो ख़्वाब में,
क्या ख़ाक करेगा वो भला फिर, प्यार दुनिया के सामने?

ये ले खंजर, ये मैं 'अमन', गर इश्क नहीं है मुझसे,
तो आज है इम्तिहान, कर दे, आर-पार दुनिया के सामने|

Meanings:  इकरार-accept जार-जार-to cry in full volume नीलाम-auction
           क़ुबूल-accept गर-if इम्तिहान-exam

29) आसाँ नहीं होता था, तेरे

आसाँ नहीं होता था, तेरे शहर से यूँ निकल जाना|
यूँ मान, के होता था इक, ज़हर का निगल जाना|

बात बदल देने की तेरी, खू प्यारी थी मुझको|
पर देखा नहीं था कभी तेरा ही, मोहब्बत से बदल जाना|

मरती थी मुझपे, करती थी मजाक, खंजर ले-ले के|
पर लहू जो देखा तेरा, तभी अपना कतल जाना|

क्या प्यारा न था तुझमें, इक छोड़ कर डरना खुद से?
इक निकाह दुसरे से और इक, हसरत-ए-गैर वतन जाना|

दिन क्या गुज़रता था जो तू, दिखती थी कभी-कभी|
कब-कब तेरा आना और, कब-कब में निकल जाना|

क्यूँ पैड़ मिटाऊँ मैं ही तेरे, क़दमों की ऐ 'अमन'?
आशिक भरे पड़े हैं तेरे, गली-गली गुजर जाना|

Meanings: आसाँ-easy निगलना-to swallow खू-habit लहू-blood कतल-murder
         निकाह-marriage हसरत-wish गैर वतन जाना-to go abroad
         पैड़-foot prints आशिक़-lovers

28) शब गहराई, सोचता हूँ

शब गहराई, सोचता हूँ कैसे सेहरा हो|
ना तू निकली, ना दिन, जैसे दोनों पर पहरा हो|
तू ज़ेबा दुल्हन मेरी थी, मैं आशिक तुरबत तक|
ना समझी, ना समझेगी गम, कितना ही गहरा हो|

सपना था मैं पाऊंगा, तुझको इन बाहों में,
फिर छोड़ गयी मुझको ये तू कैसी राहों में?
और खड़ा रहा मैं वहीँ अकेला तनहा सा जैसे,
इंतज़ार-ए-बारिश में, खुद बादल ठहरा हो|

तू है ज़ालिम हूर, पर ऎसी भी क्या मजबूर?
के याद तलक ना आये, ये कैसे किया मंज़ूर?
रास नहीं आया तुझको कुंदन सा मेरा प्यार 'अमन',
तुझे चीज़ चाहिए वो, जिसका सिर्फ रंग सुनहरा हो|

Meanings: शब-night सेहरा-morning ज़ेबा-beautiful तुरबत-grave तनहा-alone
          ज़ालिम-cruel हूर-an angel in fictions considered to be considered to be
          extremely of beauty कुंदन-pure gold सुनहरा-golden color

27) क्या आशिक हैं, माशूक हैं

क्या आशिक हैं, माशूक हैं, इश्क को जो कर देखते हैं|
वो तो मजाक-मजाक में भी, नाला हो-हो कर देखते हैं|

हम शीशे पर लिख गए खून से, वो ख़याल-ए-हुस्न में खोये थे|
गुरूर में अपना हुस्न उसी, शीशे को धो कर देखते है|

गालों पर आँसू सूख गए, मुस्कुराया लेकर सुर्ख-ए-लब|
मैं भूल गया था दर्द को, आज फिर से रो कर देखते हैं|

वो दर्द-ए-आसमाँ है, जला-जला सा जहां 'अमन',
खत साथ लिपटा होता है जब, वो छत से पत्थर फेंकते हैं|

Meanings: आशिक-lover माशूक़-beloved नाला-sore ख़याल-thoughts
          गुरूर-ego हुस्न-beauty सुर्ख-ए-लब-dry lips दर्द-ए-आसमां-sky of sorrow

26) ख्वाइश-ए-आखरत वहमी है

ख्वाइश-ए-आखरत वहमी है, जिंदगी खुद गलत फहमी है|
दिल तेरे एहसान तले है, याद भी सहमी सहमी है|

हो लाख शौक दुनिया को, तेरी महफ़िल सजाने का,
मैं क्यूँ बनूँ कायल तेरी ही बज़्म में आने का?
दिया होगा सबको मलहम तूने दर्द-ए-ज़माने का,
मेरी खातिर तो आज तलक, तू वही बे-रहमी है|

मैं जज्बा-ए-शिकार था, दिल भी कुछ बीमार था
ज़ख्म कुरेदने आया जो, वो मेरा ही यार था
कैसा तो वो प्यार था? अहम अड़ा था प्यार में,
और मुद्दत के बाद भी तू, आज तलक अहमी है,

तेरे कदमों में ये सर था, फकत उल्फत का ही तो डर था|
मौत तेरे घर पर थी, या बर्बादी का वो दर था?
है इल्तिजा इतनी 'अमन', के याद तू रखना मुझे,
जिंदगी तो शुरुआत थी, अभी मौत भी मुझे सहनी है|

Meanings: ख्वाईश-wish आखरत-time of death  कायल-convince बज़्म-court
          आज तलक-till date जज्बा-zeal ज़ख्म-wound अहमी-egoistic
          फ़कत-only उल्फत-love इल्तिजा-request

Tuesday, February 15, 2011

25) दिल में रख कर भी कहती है

दिल में रख कर भी कहती है, याद नहीं करती,
बेवफा है, बेवफा सी बात नहीं करती|

तेरे शौक-ए-सुर्ख जोड़े ने, मेरा क़त्ल किया वरना,
लिबास-ए-बेवा रंगने को, मुझ पे घात नहीं करती|

कलेजा चीर के भेजा था, पर देखा ही नहीं तुमने,
गोया बंद खत की वापस यूं, सौगात नहीं करती|

जुदाई-ए-उल्फत के गम में तू, रोती थी दिन रात,
सुना है, आज कल तू, वैसी बरसात नहीं करती|


तेरे लब चूमने का नशा, हर पल को रहता था,
शराब तो वैसा नशा, पूरी रात नहीं करती|

तू समझ ही नहीं पायी कभी, खुद ही के जज्बात,
वरना दिल मेरा तोड़ के, खुद को यूं बर्बाद नहीं करती|

तुझे इश्क था मुझ से 'अमन', अब मान भी जा क्योंकि,
रो कर भी मेरी हालत पर, तू फ़रियाद नहीं करती|

Meanings: शौक-ए-सुर्ख जोड़ा-wish to have drapery of a married woman
          लिबास-clothes, बेवा-widow, लिबास-ए-बेवा-customary white clothes of a widow
          उल्फ़त-to be happy on being close to someone (love)
          लब-lips जज़्बात-emotions फ़रियाद-request

Monday, January 17, 2011

24) की बुत परस्ती से तौबा

की बुत परस्ती से तौबा, तो हुस्न परस्ती क्या करें?
दिल करता खुद से मटरगस्ती, हम दिल से मस्ती क्या करें?

बाज़ार-ऐ-बीचों बीच गुज़रे, वो नज़र झुकाए शर्म से,
हमने मुफ्त उनको जान दी, अब इससे सस्ती क्या करें?

बेवफा भँवरे से तूने, क्यों इश्क किया मेरी कली?
लुट  गयी, हाय मिट गयी, मेरे गुल की हस्ती, क्या करें?

दिल को कहते "मत प्यार कर", ना मानता तो धमकाते,
पर  दिल मान गया पहली दफा, अब ज़बरदस्ती क्या करें?

सुबह उनकी याद सताए, दिन में आलम संजीदा,
शाम कटे तो कटे क्योंकर, रात है डसती, क्या करें?

वो ज़ालिम थी, वो ज़ालिम है, मंज़ूर हमें है ऐ 'अमन',
पर उस ज़ालिम की सिर्फ एक झलक को, आँख तरसती, क्या करें?

Meanings: बुत परस्ती-idol worship गुल-flower हस्ती-personality संजीदा-serious क्योंकर-how

23) दिल में लहू-ऐ-दिल

दिल में लहू-ऐ-दिल के सिवा भला क्या होगा?
पिए का नशा उसकी निगाहों के आगे चला क्या होगा?

मेरे खत को उसने बारिश में बहाने कि हसरत की,
लिखावट ही मिटी न होगी, वो कागज़ भी गला क्या होगा?

वो मिलने को तो आयी, पर बस नाम भर के लिए,
इस जिगर से भी ज्यादा उसका दिल जला क्या होगा?

उसी आलम में मैं था, उसी में थी वो ज़ालिम,
उसने पहचान लिया चेहरा, झूठ चला क्या होगा?

पहला ख्वाब टूटा तो दूसरा ना देखा मैंने 'अमन'
पर उसके सीने में भी कोई और ख्वाब पला क्या होगा?

Meanings: लहू-Blood जिगर-liver आलम-environment