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Monday, November 7, 2011

48) ना सही


तेरे साथ बिताए थे, जो हसीन पल मैंने हज़ार,
अब जिंदगी तेरे बिना जीनी पड़े तो भी सही,

तुझे मुझ से नफरत जो हो गई है इस क़दर,
के भूल गयी है बरसों की अपनी मोहब्बत को सही,

सीने में सजा के रखूंगा मैं तेरे प्यार का मदिर,
मूरत तेरी हो सही, जो ना हुई तो ना सही,

तू भी मुझ को याद कर के तड़पा करेगी ज़रा ज़रा,
और पोंछेगा तेरे आँसू, जो मैं नहीं तो कोई और सही,

तड़प मुझे भी है, तेरी जुदाई के गम की कसम,
पर जिंदगी है इस तरह तो जिंदगी यूं ही सही,

अपनी मोहब्बत कभी भी अपना नगमा बन पाई नहीं,
ये बन जाए 'अमन' की एक शायरी तो वही सही....

(Dedicated to one of my best friends who ...)

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