(a long lost poem of mine. Found today in heap of old papers while cleaning house)
नहीं आशिक़ी से फ़ुर्सत है अब रूहे-आशिक़ को,
लगे है गर्त भी जन्नत, गुबारे-धुल नहीं पायेगी |
हो जान जिस्म से जुदा सो हो, गम न कर नादान,
मज़ा है जब माशूक़-ए-जुदाई क़ुबूल नहीं पायेगी |
हर वक़्त कुछ कर देने वालों में से था मैं,
मरने जाने पर रूह को तू मक़बूल नहीं पायेगी |
मेरी मोहब्बत का गुल तूने ठुकराया इसलिए,
क़ज़ा पर भी तू मेरे नाम से फूल नहीं पायेगी |
लिखता जा 'अमन' दिल तक, के इक दिन ख़ाक होना है,
कोई रखे न रखे याद, पर वो भूल नहीं पायेगी |
नहीं आशिक़ी से फ़ुर्सत है अब रूहे-आशिक़ को,
लगे है गर्त भी जन्नत, गुबारे-धुल नहीं पायेगी |
हो जान जिस्म से जुदा सो हो, गम न कर नादान,
मज़ा है जब माशूक़-ए-जुदाई क़ुबूल नहीं पायेगी |
हर वक़्त कुछ कर देने वालों में से था मैं,
मरने जाने पर रूह को तू मक़बूल नहीं पायेगी |
मेरी मोहब्बत का गुल तूने ठुकराया इसलिए,
क़ज़ा पर भी तू मेरे नाम से फूल नहीं पायेगी |
लिखता जा 'अमन' दिल तक, के इक दिन ख़ाक होना है,
कोई रखे न रखे याद, पर वो भूल नहीं पायेगी |
Gr8
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