
सिर्फ इक दर्द नहीं जाता, और इक नींद नहीं आती|
जला देना पढ़ कर मेरे, सारे कलाम, मेरी जान,
ये राज़ की बातें किसी से ज़ाहिर, की नहीं जाती|
अच्छा किया जो साकी ने बदल दी थी बोतल,
समां वरना कुछ और होता, जो थोड़ी भी चढ जाती|
लड़ेंगे क्यों बिसात पर, भला अब अपने मोहरे,
के तेरे हैं लड़की वाले, और मेरे हैं बाराती|
वो दिन और थे जब हर पल, था चर्चा-ए-इश्क,
अब उस दौर की एक याद भी, सही नहीं जाती|
मैं आया था उस रोज, सुनने तेरी एक हँसी,
पर मुझे देख, क्यूँ तेरे मुँह से आवाज़ नहीं आती?
मैं कर्ज़दार हूँ किसी, तेरी ही अपनी का,
जिसके बिना मुझे तेरी, खबर नहीं पाती|
हर अदा तेरी मुझे, पागल कर रही है,
भला एक बात तो हो जो तेरे, करीब नहीं लाती|
हर बार तेरी चली, क्या बुरा होता अगर,
मरने से पहले एक बार, मेरी भी चल जाती?
तखल्लुस ही कर लिया, मैंने तेरा नाम 'अमन',
अब नाम जुड़े रहेंगे, जब तक मौत नहीं आती|
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बिसात-chessboard मोहरे-pieces चर्चा-discussion दौर-times सहना-tolerate
उस रोज-that day तखल्लुस-pen name, nom de plume
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