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Wednesday, March 2, 2011

31) हो गयी थी नफरत

हो गयी थी नफरत, फिर भी होती क्यूँ महसूस,
तेरे घर के,करीब मेरी मज़ार, बनाने की ज़रूरत थी?

मेरे जाने के बाद भी उसका एक आशिक दूसरा था,
इक रोज तो मुझको भी देर से, आने की ज़रूरत थी|

मेरी तुरबत पे पहली दफा, इश्क-ऐ-इज़हार किया तुमने,
तुझको भी गिला है कि, जीते-जी जताने की ज़रूरत थी|

न दवा की हसरत थी, न दारू पुरानी हो अमन,
मुझे नज़र-ऐ-प्यार-ऐ-यार, पुराने की ज़रूरत थी|

गए ज़फर-आतिश, और गए वो ग़ालिब-मीर,
मुझे भी उस रेख्ते के ज़माने की ज़रूरत थी|

तेरी समझेगा 'अमन' कौन, इस राह में बातें?
उन्हीं के दौर में तुझको भी, जाने की ज़रूरत थी|

Meanings: नफरत-hate मज़ार-grave ज़रूरत-need इक रोज-some day
          तुरबत-coffin पहली दफा-first time इज़हार-express गिला-sorrow
         जीते-जी-while living दारू-wine नज़र-sight
         नज़र-ए-प्यार-ए-यार-a look of beloved with love
         ज़फर-Bahadur Shah 'Zafar' - II, आतिश-Khwaza Haider Ali 'Aatish'
         ग़ालिब-Asadullah Mirza 'Ghalib', मीर-Mir Taki Mir
         रेख्ता-A poetic form of urdu in mid 1800's दौर-times

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