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Wednesday, March 2, 2011

26) ख्वाइश-ए-आखरत वहमी है

ख्वाइश-ए-आखरत वहमी है, जिंदगी खुद गलत फहमी है|
दिल तेरे एहसान तले है, याद भी सहमी सहमी है|

हो लाख शौक दुनिया को, तेरी महफ़िल सजाने का,
मैं क्यूँ बनूँ कायल तेरी ही बज़्म में आने का?
दिया होगा सबको मलहम तूने दर्द-ए-ज़माने का,
मेरी खातिर तो आज तलक, तू वही बे-रहमी है|

मैं जज्बा-ए-शिकार था, दिल भी कुछ बीमार था
ज़ख्म कुरेदने आया जो, वो मेरा ही यार था
कैसा तो वो प्यार था? अहम अड़ा था प्यार में,
और मुद्दत के बाद भी तू, आज तलक अहमी है,

तेरे कदमों में ये सर था, फकत उल्फत का ही तो डर था|
मौत तेरे घर पर थी, या बर्बादी का वो दर था?
है इल्तिजा इतनी 'अमन', के याद तू रखना मुझे,
जिंदगी तो शुरुआत थी, अभी मौत भी मुझे सहनी है|

Meanings: ख्वाईश-wish आखरत-time of death  कायल-convince बज़्म-court
          आज तलक-till date जज्बा-zeal ज़ख्म-wound अहमी-egoistic
          फ़कत-only उल्फत-love इल्तिजा-request

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