Pages

Wednesday, March 2, 2011

28) शब गहराई, सोचता हूँ

शब गहराई, सोचता हूँ कैसे सेहरा हो|
ना तू निकली, ना दिन, जैसे दोनों पर पहरा हो|
तू ज़ेबा दुल्हन मेरी थी, मैं आशिक तुरबत तक|
ना समझी, ना समझेगी गम, कितना ही गहरा हो|

सपना था मैं पाऊंगा, तुझको इन बाहों में,
फिर छोड़ गयी मुझको ये तू कैसी राहों में?
और खड़ा रहा मैं वहीँ अकेला तनहा सा जैसे,
इंतज़ार-ए-बारिश में, खुद बादल ठहरा हो|

तू है ज़ालिम हूर, पर ऎसी भी क्या मजबूर?
के याद तलक ना आये, ये कैसे किया मंज़ूर?
रास नहीं आया तुझको कुंदन सा मेरा प्यार 'अमन',
तुझे चीज़ चाहिए वो, जिसका सिर्फ रंग सुनहरा हो|

Meanings: शब-night सेहरा-morning ज़ेबा-beautiful तुरबत-grave तनहा-alone
          ज़ालिम-cruel हूर-an angel in fictions considered to be considered to be
          extremely of beauty कुंदन-pure gold सुनहरा-golden color

No comments:

Post a Comment