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Saturday, December 5, 2009

8) फ़र्ज़ (7th class)

आतंकी घटनाएं सह कर भारत फलता -फूलता है
कलयुग है ये , सतयुग नहीं , क्षमादान नहीं चलता है
फिर भारत क्यों गाँधी (जी ) कि विचार धरा को ढो रहा ?
जब भारत पर आज भी इतना अत्याचार हो रहा .
पर सैनिको को होने दो शहीद , हमको क्या हर्ज़ है ?
अरे डूब मरो नेताओं , ये तो तुम्हारा फ़र्ज़ है ...

बूँद -बूँद कर घटता , अपने देश भक्तो का ये घड़ा
गुट -निरपेक्षता हर बार अपनी जीत के आगे जा अदा .
पूर्ण शक्ति से लड़ना है अब जो युध्ह भावी है ,
भूल जाना है अब कि भारत शांत स्वभावी है
देश भक्त क्यों खाएं गोली ? उन पर क्या क़र्ज़ है ?
अरे डूब मरो नेताओं , ये तो तुम्हारा फ़र्ज़ है ...

गंगा में बहने दो खून , होने दो रक्त प्रपात
एक अंतिम शब्द -घोष में कर दो आतंकवाद समाप्त ,
प्रेम सुधा तभी बरसेगी , लगातार संग सूत्रधार
नहीं करना पड़ेगा हमें तब शांति का और इंतज़ार
पर अपना मोह छोड़े , किसे इतनी गर्ज़ है ?
अरे डूब मरो नेताओं , ये तो तुम्हारा फ़र्ज़ है ...

क्यों तरसें पिल पिल कर हम , क्यों पिस जायें मिटटी से ?
इतने बेदर्द भी मत बनो कि दिल न देहले चिट्ठी से .
गर्त में चली जाएगी पहचान , नहीं जाने पाएंगे उस पार
वापस आ गए जीतने , हम हारे हुए को अबकी बार
पर हमारी वो पिछली कुर्बानी , कहाँ कागज़ में दर्ज है ?
अरे डूब मरो नेताओं , ये तो तुम्हारा फ़र्ज़ है ...

(Inspired by a poet Vinit Chauhan of Alwar, Rajashthan.)

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