सालों बाद फिर मिले दोस्त
माना कि लोग बदल जाते हैं
तुम्हारी आदत नहीं गयी
जाम देने कि
आदत वो खेलने कि
हार जाने कि
और
जीत का ईनाम देने कि
दुःख को खुद पी जाने कि
और उन्हें खुश रखने के लिए
ख़ुशी का पैग़ाम देने कि
आदत वो इठलाने कि
गुस्सा होने कि
और
खुद ही सलाम देने कि
पर मैंने बदल दी हैं आदतें
किसी को कर बदनाम देने कि
बात बात पर काम देने कि
और एक ऐसा नाम देने कि
जो सिर्फ मुझे पसंद था
(This poem was written in 9th class. No inspiration. Just trying to manage sentences with rhyming words.)
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