सोचता हू मैं
कभी कभी
करोड़ों हृदयों को कुचलने वालो
उनके घर उजाड़ कर
तुम समझते होगे
आखिर गरीब है
लहू का घूँट पी लेगा
जीवन कि डोर को भी सी लेगा
इंसान ही तो है
जी लेगा
पर मुझे अचम्भा है
घोर अचम्भा
इनकी इतनी चीखें सुनकर भी
जाने तुम कैसे जी लेते हो ??
(Written in eighth class)
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