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Tuesday, December 8, 2009

12) समझ बैठे (9th class)

दूर दिखा था लाल रंग
जो निशानी है खतरे कि
हमें देखा वो लाल फूल
और हम प्यार समझ बैठे

हमें तो "साहिल " भी
डूबने के काबिल था
पर तुमने ही डूबा दिया
तो तुम्हें मजधार सम्जः बैठे .

तुम रोये तो हम रोये
तुम हँसे तो हम हँसे
पर तुम हारे और हम जीते
तो खुद कि हार समझ बैठे

पहले तुमने मेरा दिल तोडा
फिर तुमने अपना दिल तोडा
दोनों टूटे दिल के पंछी
हम तुमने यार समझ बैठे

तुम्हारे प्यार में हम
हो गए इतने अंधे
की तुम चुप -चाप निकल गए
और हम इकरार समझ बैठे

(9th class was my zenith of my poems wth regard to the frequency of writing poems (but not in quality). That academic-session contributed around 20 poems of my collection.)

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