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Tuesday, December 8, 2009

18) ठहरा हूँ (8th class)

अब तो कुछ हलचल हो, बहुत दिनों से ठहरा हूँ.
हर पत्ता उड़ा है, हर फूल खिला है,
पर नहीं अभी मैं लहरा हूँ.
बहुत दिनों से ठहरा हूँ

क्या जाता है? क्या आता है? मुझे कुछ परवाह नहीं
मेरा नसीब यहाँ नहीं है, वो मिलेगा वहीँ कहीं
एक मील का झंडा बन कर, आज कहीं मैं फेहरा हू
बहुत दिनों से ठहरा हूँ

समझना न, परवाह नहीं तो
मैं हू कुछ भी नहीं समझता
अपनी ही धुन में हूँ तो क्या?
मेरा दिल भी है मचलता
सब कुछ देख सकता हू मैं और
अभी हुआ नहीं मैं बहरा हूँ
बहुत दिनों से ठहरा हू

एक जगह ऐसी ढूंढ ही लूँगा, जिसकी तमन्ना सबको है
पर जाने से पहले हमको-तुमको, लिखना एक पन्ना सबको है
पन्ने पर होगा लिखा हुआ, मैं किसके सर का सेहरा हूँ...
सब कुछ है इस पन्ने में मेरा, मैं कितना फीका-गहरा हूँ
मैं भी आना चाहता हूँ इस जहाँ में
बहुत दिनों से ठहरा हू
बहुत दिनों से ठहरा हू

(Written in 8th class)

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