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Tuesday, December 8, 2009

13) वतन (11th class)

दोस्त ! मौत मांग ले ! तू ज़िन्दगी मन कर दे
एक दफा वतन कि खातिर आशिकी फना कर दे
अल्लाह अब मर रहा हू , आसमान घना कर दे
अँधेरे में इस मिटटी को मेरा कफ़न बना कर दे

दोस्त चल , तू आज नया विश्वास ले के चल
मातृ -धतृ-मृत -शर्त का एहसास ले के चल
के जीतने चले हैं और जीत कर आयेंगे
पेहें पोशाक , देश का इतिहास ले के चल

न थक , न हार , के आज दोस्त , गर तू हार गया
तो मान , तेरे मान को आज शत्रु मार गया
के रुका नहीं जो अंत तक , आज इस युद्ध में
समझ वही "चेतक " आज नाले के पार गया

कड़कती रहे आज बिजलियाँ बहुत मगर
कर गया तू सामना आँधियों का अगर
तो कई टुकड़े होंगे तेरे सामने तेरे शत्रु के
कुछ मिले न मिले , कुछ पड़े इधर उधर

तुझको कहता है काफिर , वो तेरा शत्रु है शातिर
तेरी मौत कि खातिर , बहुत से जाल बिछाएगा
होगी बाणों कि बरसात , और यमदूतों कि बारात
यही आलम हर दिन रात , पर विजय बनाये जा

दाल उसकी आँख में आज तू नज़र
और उसकी धरती को रौंद कर गुज़र
रुकना नहीं जब तलक मंजिल न मिले
यहीं नहीं लहरा तिरंगा , कराची तक फहर .

फिर सुन स्वतंत्रता कि पुकार को तू कान से
न जीत उनको लूट कर , तू जीत उनको दान से
फिर दिखा के ताक़त का एहसास , अपने दुश्मन को
उन्ही कि उस धरती को , लौटा दे तू सम्मान से

पर उसके लिए तू हो तय्यार , तू दिल आशना कर दे
एक दफा वतन कि खातिर , आशिकी फना कर दे

दोस्त मौत मांग ले , तू ज़िन्दगी मना कर दे !!!!

(Written in the beginning of 11th class)

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