Pages

Tuesday, December 8, 2009

15) आज मैं (9th class)

दिल कि भड़ास निकालने चला हू आज मैं
बताऊंगा मेरी ज़िन्दगी के मोड़ का आग़ाज़ मैं

न जाने कब से था मेरा सीना बंद
उसमें छिपा मेरा दिल कब से दर रहा
मुझे रोज़ तो देखते हो तुम कबसे
पर जाना नहीं कि मैं जी -जी कर मर रहा
आज खोलूँगा मेरे दिल का वो राज़ मैं
दिल कि भड़ास निकालने चला हू आज मैं

सबके दिल में है कोई न कोई राज़ फिर भी
साड़ी दुनिया रहती है चमकती रातो में
अपनी शान में रखते हैं साज़ वो घर में
डरपोक मन को छिपा जाते हैं बातो में
पर सजाऊंगा निडर सड़क पर साज़ मैं
दिल कि भड़ास निकालने चला हू आज मैं

वो बड़े वीर हैं कि तीर हैं उनके तरकश में
कि हमको हटा दें इस रस्ते से , वो दम नहीं उनमें
कभी चोट थी उनको , तो रुक गए थे वो
पर सम्झादो कि कम से कम हम नहीं उनमें
दम नया है , हू जवानी का नया अंदाज़ मैं
दिल कि भड़ास निकालने चला हू आज मैं

हम थे बात में उनकी कबसे और
कबसे थे वो भी तोह में हमारी
हम ने भेजे थे सफ़ेद पंछी हज़ार
पर उन्होंने भेजी युद्ध कि सवारी
बहुत हुआ , अब भेजूंगा बाज़ मैं
दिल कि भड़ास निकालने चला हू आज मैं

(Written in 9th class. That was 4 AM when I wrote this poem. That day I had decided to rebuke a girl in my class for she insulted Indian philosophy, whom earlier, I decided to propose for her beauty. Finally I decided to choose for Country rather than a girls body.)

1 comment: