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Saturday, December 5, 2009

6) तुम समीर बन जाओ (8th class)

मैं बहार हू या तुम बहार हो
पर मिली हमारी आखें हैं
एक ही दुःख सता रहा है
हमारे बीच सलाखें हैं
आओ अब मुझसे मिलने
तुम समीर बन जाओ ...

पता नहीं कब से मर रहा
तुम भी दुःख कि मारी हो
एक ही दुःख सता रहा
अब नयी तकदीर हमारी हो
अब धीरज खो रहा है
तुम भी अधीर बन जाओ
आओ अब मुझसे मिलने
तुम समीर बन जाओ ...

पत्थर मैं भी नहीं
पत्थर तुम भी नहीं
पर नियति यही चाहती है
तो फिर यही सही
चलो नदी बन कर मैं बहूँ
तुम मेरा तीर बन जाओ
आओ अब मुझसे मिलने
तुम समीर बन जाओ ...

हमारा मिलन न हो सकेगा
आदत डालें दूर रहने कि
मैंने तो आशा ही छोड़ दी
तुम्हारे संग बहने कि
कभी न मिलने वाला
मैं तो राँझा बन गया
जाओ अब तुम भी घर
तुम भी हीर बन जाओ
आओ अब मुझसे मिलने
तुम समीर बन जाओ ...

(Inspired by a temporary attraction towards a girl in my school days. She is no longer in my mind. Soon I started hating her because she used to hate India, my motherland. But thanks to her for I could make such a nice poem in 8th class. Dedicated to love)

2 comments:

  1. it is really hard to choose one.
    but you did it,
    salute you.

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  2. Sir,sir,sir.......kya baat hai sir....

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